हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमाचल की गोद में बसा हुआ है। इसे देवभूमि के रूप में जाना जाता है और कहा जाता है कि इस पर देवी-देवताओं की कृपा है। पूरे प्रदेश में प्रस्तर और काष्ठ के मंदिर बने हुए हैं। यहां की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं की वजह से यह प्रदेश अद्धितीय है। हिमाचल प्रदेश लोकगाथाओं और सौंदर्य की भूमि है। पौराणिक आख्यानों में हिमाचल प्रदेश को यक्षों गंधर्वो और किन्नरों का प्रदेश बताया गया है। प्रागैतिहासिक काल में यहां कोल, किरात और नाग जातियों रहती थी। बाद में उत्तर से भारतीय तिब्बती, सिंधु घाटी से भारतीय आर्य मध्य एशिया से खस लोग अनंत हिम और अपूर्व शांति की इस भूमि पर आए महाभारत और कुमारसंभव में इस जगह की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। जहां कुनिंदों और औदुंबरों ने बहु-जनजातीय राज्य स्थापित किए। मध्यकाल में जब उत्तर-पश्चिम से आक्रमण हुए तो राजपूताना और आसपास के क्षेत्रों के राजवंश यहां आकर बस गए। और अन्होनें अपनी रियासतें स्थापित कीं इन राजवंशों ने यहा के स्थानीय लोगों को सभ्य-संस्कृत बनाया और भारतीय चित्रकला की अद्धितीय धरोहर पहाड़ी कला और स्थापत्य कला को प्रश्रय दिया।राज्य का उत्तर-पूर्वी भाग हिमाच्छादित रूपहले पर्वत शिखरों, मनोरम झीलों और हरी वनस्पतियों से सुसज्जित है, जिसका प्रभाव जादुई और भावना संगीतमय है। राज्य में फल-फूल व जीव-जंतु प्रचुर मात्रा में हैं। इस बहुमूल्य भू-भाग की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से आदर्श है। उत्तर में यह जम्मू और कश्मीर से सटा है और दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र हैं। दक्षिण और पश्चिम में यह राज्य क्रमश: हरियाणा और पंजाब से जुड़ा है और इसके पूर्व में तिब्बत की सीमा है।
अप्रैल 1948 में इस क्षेत्र की 27,000 वर्ग कि.मी. में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। 1954 में जब 'ग' श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी. हो गया। सन 1966 में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग कि.मी. हो गया। आज हिमाचल प्रदेश को न केवल पहाड़ी क्षेत्रों के विकास का आदर्श माना जाता है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं में इस प्रदेश ने उल्लेखनीय विकास किया है।
कृषि
कृषि हिमाचल प्रदेश का प्रमुख व्यवसाय है। यह राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह 69 प्रतिशत कामकाजी आबादी को सीधा रोजगार मुहैया कराती है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र से होने वाली आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्पाद का 22.1 प्रतिशत है। कुल भौगोलिक क्षेत्र 55.673 वर्ग किमी हेक्टेयर में से 9.79 लाख हेक्टेयर भूमि के स्वामी 9.14 लाख किसान हैं। मंझोले और छोटे किसानों के पास कुल भूमि का 86.4 प्रतिशत भाग है। राज्य मे कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है।
बागवानी
प्रकृति ने हिमाचल प्रदेश को व्यापक कृषि जलवायु परिस्थितियां प्रदान की हैं जिसकी वजह से किसानों को विविध फल उगाने में सहायता मिली है। बागवानी के अंतर्गत आने वाले प्रमुख फल हैं- सेब, नाशपाती, आड़ू, बेर, खुबानी, गुठली वाले फल, आम, लीची, अमरूद और झरबेरी आदि।
दसवी पंचबर्षीय योजना के दौरान राज्य में बागवानी के समन्वित विकास के लिए टेक्नोलोजी मिशन 80 करोड़ रूपए की कुल लागत के साथ स्थापित किया जा रहा है। यह मिशन अंत से अंत तक की अवधारणा पर आधारित है जिसके तहत राज्य में बागवानी विकास की सभी तरह की संभावनाओं का पता लगाया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत विभिन्न जलवायु वाले कृषि क्षेत्रों में चार उत्कृष्टता केंद्र बनाए जाएंगे और जल संरक्षण, ग्रीन हाउस, कार्बनिक कृषि और कृषि तकनीकों से जुड़ी सभी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।
सड़कें
हिमाचल प्रदेश में, खासतौर से राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कें एक तरह से जीवनरेखा और आवाजाही का मुख्य साधन हैं। इसके 55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 36,700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बसा हुआ है और 16,807 बसे हुए गांव असंख्य पहाडि़यों के ढलानों और घाटियों में बिखरे हुए हैं। उत्पादन क्षेत्रों और बाजार केंद्रों को जोड़ने वाली सड़कों के निर्माण के महत्व को समझते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने अगले तीन वर्षों में हर पंचायत को सड़क से जोड़ने का फैसला किया है। जब यह राज्य 1948 में अस्तित्व में आया, तो यहां केवल 288 कि.मी. लंबी सड़कें थीं जो 15 अगस्त 2010 तक बढ़कर 33,171 कि.मी. हो गई हैं।
पनबिजली उत्पादन
हिमाचल प्रदेश के पांच नदी थालों में जबर्दस्त पनबिजली क्षमता है। ये पांच नदी प्रणालियां - चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज और यमुना पश्चिमी हिमाचल से निकलती हैं और हिमाचल प्रदेश से होकर गुजरती हैं। इन नदियों की अनुमानित पनबिजली क्षमता 80,000 मेगावाट है।
बिजली क्षेत्र में विकास की रणनीति के तहत पनबिजली क्षमता को वास्तविकता में परिणित करना और बिजली क्षेत्र में सुधार लाना शामिल है ताकि बिजली क्षेत्र की कार्यक्षमता बढ़े और उपभोक्ताओं को उचित दर पर अच्छी गुणवत्ता की बिजली उपलब्ध हो सके और उद्योग तथा पर्यटन क्षेत्र को प्रचुर मात्रा में बिजली की आपूर्ति हो। राज्य में कुल चिन्हित क्षमता 23,230 मेगावाट, जो देश भर की पनबिजली क्षमता का एक चौथाई है। इसमें से 6,480 मेगावाट विभिन्न संस्थाओं से पहले ही पैदा की जा रही है। 7,602 मेगावाट की परियोजनाओं पर काम चल रहा है।
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस प्रकार से सरकार ने बिजली विकास की रफ्तार तेज करने का कार्यक्रम तैयार किया है, उससे हिमाचल प्रदेश देश का 'बिजली राज्य' बनने की ओर अग्रसर है। राज्य के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाई जा चुकी है और बचे हुए छिटके गांवों तक बिजली पहुंचाने का काम चल रहा है।
औद्योगिक विकास
हिमाचल प्रदेश ने पिछले कुछ वर्षों में औद्योगीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रदूषण मुक्त वातावरण, बिजली की पर्याप्त आपूर्ति, शांतिपूर्ण माहौल और जवाबदेह और पारदर्शी प्रशासन राज्य की औद्योगिक नीति की विशेषताएं हैं। राज्य में 349 बड़े और मंझोले तथा लगभग 33,284 छोटे उद्योग लगाए जा चुके हैं जिन पर करीब 4,822.54 करोड़ रुपए की पूंजी लगी हुई है और इनमें 2 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इस क्षेत्र का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 17 प्रतिशत है। इस क्षेत्र से 6000 करोड़ का वार्षिक कारोबार होता है।
सूचना प्रौद्योगिकी
हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य को सूचना प्रौद्योगिकी के शिखर पर ले जाने के लिए ‘नैसकॉम’ के सहयोग से ‘सूचना प्रौद्योगिकी विजन-2010’ तैयार किया है। सूचना प्रौद्योगिकी नीति के तहत यह फैसला किया गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी से संबद्ध सेवाओं और शैक्षिक संस्थानों समेत सभी सूचना प्रौद्योगिकी परियोजनाओं को उद्योग का दर्जा दिया जाए। इसलिए वर्तमान औद्योगिक नीति के अंतर्गत उद्योगों को उपलब्ध सभी प्रोत्साहन सुविधाएं राज्य की सूचना प्रौद्योगिकी इकाइयों को भी दी जा रही है।
जैव प्रौद्योगिकी
जैव प्रौद्योगिकी के महत्व को देखते हुए राज्य में विद्यमान जैव-प्रौद्योगिकी की संभावनाओं के दोहन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिए अलग से जैव-प्रौद्योगिकी विभाग खोला गया है। राज्य ने अपनी जैव-प्रौद्योगिकी नीति तैयार की है। सरकार की तरफ से जैव-प्रौद्योगिकी इकाइयों को वही रियायतें दी जा रही हैं जो अन्य आद्योगिक इकाइयों को मिलती हैं। राज्य सरकार का सोलन जिले में जैव -प्रौद्योगिकी पार्क की स्थापना का प्रस्ताव है।
सिंचाई और जलापूर्ति
साल 2007 तक हिमाचल प्रदेश में कुल बुवाई क्षेत्र 5.83 लाख हेक्टेयर था। गांवों में पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध कराई गई है और अब तक राज्य में 15,000 हैंडपंप लगाए जा चुके हैं। जल आपूर्ति और सिंचाई क्षेत्रों में सुधार के लिए राज्य सरकार ने 339 करोड़ रुपए की लागत से 'वाश' परियोजना आरंभ की है। यह परियोजना सिंचाई तथा पीने के पानी के लिए जी.टी.जेड. के सहयोग से चलाई जा रही है।
शिमला नगर में 40 करोड़ रुपए की लागत से पीने के पानी की आपूर्ति की नई योजना शुरू की गई है। भारत सरकार ने स्वजल धारा कार्यक्रम के तहत 471 योजनाओं के लिए 7.33 करोड़ रुपए मुजूर किए हैं। सिंचाई तथा लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति के राज्य सरकार के प्रयासों में सहयोग करते हुए केंद्र सरकार ने 49 छोटी सिंचाई परियोजनाओं के लिए 16.31 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं।
वानिकी
राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। वन रिकार्ड के अनुसार, कुल वन क्षेत्र 37,376 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है जहां पहाड़ी चरागाह वाली वनस्पतियां नहीं उगाई जा सकतीं क्योंकि यह स्थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है। कृषि योग्य वन क्षेत्र केवल 20,657 वर्ग किलोमीटर है।
राज्य सरकार अपनी नई परियोजनाओं के माध्यम से अधिकतम क्षेत्र को हरित पट्टी के दायरे में लाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए राज्य सरकार की अपनी, भारत सरकार की और बाहरी सहायता से चल रही परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है। विश्व बैंक ने मध्य हिमालय में समन्वित जलाशय विकास परियोजना के लिए 365 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। यह परियोजना अगले छह वर्षों में 10 जिलों के 42 विकास खंडों की 545 पंचायतों में क्रियान्वित की जाएगी। राज्य में 2 राष्ट्रीय पार्क और 32 वन्यजीव अभयारण्य हैं। वन्यजीव अभयारण्य के अंतर्गत कुल क्षेत्र 5,562 कि.मी., राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत 1,440 कि.मी. है। इस तरह कुल संरक्षित क्षेत्र 7,002 वर्ग किलोमीटर है।
शिक्षा
समग्र विकास निष्पादन की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश का तीसरा सर्वश्रेष्ठ राज्य है। पिछले तीन वर्ष की उपलब्धियां 'इंडिया टुडे' के सर्वेक्षण में प्रकाशित हुई थीं और प्राथमिक शिक्षा तथा अध्यापक- विद्यार्थी अनुपात में हिमाचल प्रदेश प्रथम स्थान पर रहा। राज्य में साक्षरता के क्षेत्र में क्रांति हुई है और साक्षरता के मामले में हिमाचल प्रदेश, केरल के बाद दूसरे स्थान पर है। राज्य में लगभग 17,000 शिक्षण संस्थान हैं जिनमें दो मेडिकल कालेज, सरकारी क्षेत्र का एक इंजीनियरिंग कालेज और अनेक तकनीकी, व्यावसायिक तथा अन्य शिक्षण संस्थाएं शामिल हैं। वर्ष 2011 की जन गणना के अनुसार राज्य का साक्षरता प्रतिशत 83.78 है। राज्य सरकार आवश्यकता आधारित विस्तार के अलावा गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करने पर विशेष जोर दे रही है। ज्ञान का प्रकाश राज्य के कोने-कोने में पहुंचाने के उद्देश्य से प्रारंभिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 532 करोड़ रुपए की 'सर्व शिक्षा अभियान' नामक एक महत्वाकांक्षी परियोजना चलाई जा रही है।
पर्यटन उद्योग को हिमाचल प्रदेश में उच्च प्राथमिकता दी गई है और हिमाचल सरकार ने इसके विकास के लिए समुचित ढांचा विकसित किया है जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार तंत्र, हवाई अड्डे, यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं। राज्य सरकार राज्य को ‘हर मौसम में, हर सूरत में गंतव्य’ का रूप देने के लिए कटिबद्ध है। राज्य पर्यटन विकास निगम राज्य की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। यह निगम बिक्री कर, सुख-सुविधा कर और यात्री कर के रूप में 2 करोड़ रुपए वार्षिक आय का योगदान करता है। वर्ष 2007 में राज्य में 83 लाख पर्यटक आए थे।
राज्य में तीर्थों और नवैज्ञानिक महत्व के स्थलों का समद्ध भंडार है। राज्य को व्यास, पराशर, वशिष्ठ, मार्कण्डेय और लामाओं आदि के निवास स्थल होने का गौरव प्राप्त है। गर्म पानी के स्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक और मानवनिर्मित झीलें, उन्मुक्त विचरते चरवाहे पर्यटकों के लिए असीम सुख और आनंद का स्रोत हैं।
राज्य सरकार स्थायी पर्यटन को बढावा देने के लिए निजी क्षेत्र को इस बात के लिए प्रोत्साहित कर रही है कि वह पर्यटन संबंधी ढांचे को इस तरह विकसित करे ताकि राज्य की प्राकृतिक स्थिति और पर्यावरण अक्षुण्ण बना रहे। मुख्य जोर रोजगार सृजन और पर्यटन की अवधारणा को बढ़ावा देने पर है। अतिथियों/पर्यटकों के प्रवास की अवधि बढ़ाने के लिए गतिविधि आधारित पर्यटन के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है।